माँ ब्रह्मचारिणी का परिचय और महत्व
नवरात्रि के दूसरे दिन को माँ ब्रह्मचारिणी की वंदन से सजाया जाता है। यह देवी दुर्गा का वो रूप है जो ब्रह्मचर्य (व्रत) का प्रतीक है, अर्थात् शुद्धि, तपस्या और आत्म‑नियंत्रण। पौराणिक कथा के अनुसार, माँ पार्वती ने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को अपना पति बनाया, और इस यात्रा को दर्शाती है ब्रह्मचारिणी। सफ़ेद वस्त्र, जव्य गले में उत्सव के फूल और दो हाथों में जल‑माला—इन सारे प्रतीकशास्त्र से असली शुद्धि का संदेश मिलता है।
विज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ब्रह्मचर्य का प्रभाव मन‑शरीर पर सकारात्मक होता है; तनाव घटता है, मन की शांति बनती है। इसलिए इस दिन की पूजा को न सिर्फ आध्यात्मिक बल्कि स्वास्थ्य‑सम्बन्धी लाभ से भी जोड़ा जाता है। ब्रह्मचारिणी का जन्म मंगल ग्रह (शनि) से जुड़ा है, जो साहस, दृढ़ता और लक्ष्य‑प्राप्ति का कारक माना जाता है। इस कारण भक्तों को जीवन में नई ऊर्जा और आत्मविश्वास मिलता है।

पूजा विधि एवं विशेष भोग
पूजा करने से पहले कुछ छोटे‑छोटे तैयारियों पर ध्यान देना जरूरी है। नीचे दिए गए विस्तृत चरणों को समय‑समान पालन करने से पूजा प्रभावी बनती है।
- सुबहे उठना और स्नान: ताज़ा पानी से शुद्धिकरण नहाने के बाद सफ़ेद या लाल वस्त्र पहनें। लाल रंग इस दिन का शुभ रंग माना जाता है, क्योंकि यह शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
- वेदी सजाना: साफ़ कपड़े पर माँ की मूर्ति या तस्वीर रखें। उसके नीचे पवित्र जल, अंकुश और तिलक रखें।
- आत्म‑पूजा: दोनों हाथों से अभिषेक कर आत्मा को शुद्ध करें, माथे पर तिलक लगाएँ और तीन वज्र मंत्र उच्चारित करें।
- संकल्प लेना: जल हाथ में लेकर नवरात्रि उपवास को पूर्ण समर्पण के साथ निभाने का संकल्प लें। यह चरण मन को एकाग्र करता है।
- देवी का अभिषेक:
- दीप जलाएं और माँ के पैर पवित्र जल से धोएँ।
- दूध, दही, घी, शहद, शर्करा और पंचामृत का मिश्रण तैयार कर पूरी मूर्ति को स्नान कराएँ।
- कुंडल या काजल से माथे पर रेखा बनाएँ और लाल, सफेद पुष्प चढ़ाएँ।
- संतरा, लोटा या सिल्क का वस्त्र पहनाएँ, साथ में हल्दी‑कुशश के साथ सजाएँ।
- समर्पित सामग्री:
- सफ़ेद कमल और चम्पा के फूल, दुर्वा पत्ता, बिल्व पत्ता – ये सभी शुद्धि का प्रतीक हैं।
- सुनहरी चंदन‑लक, कुमकुम, काजल, पान तथा लौंग – ये प्रसाद के रूप में अर्पण करें।
- भोग की तैयारी:
- सफ़ेद मिठाइयाँ – मिल्क बर्फ़ी, केसरिया रबड़ी, पिस्ता बर्फ़ी।
- शाकाहारी स्नैक – आलू के कोफ्ते, लड्डू, चने की दाल खिचड़ी।
- सुगंधित शीश जैसे कि गुलाब जल के साथ इत्र, ताकि देवी को शिंगार‑सजावट का अनुभव हो।
- आरती व मंत्रजप: धूप, दीप और घी से आरती करें। साथ में "ओम् ब्रह्मचारिण्यै नम:” मंत्र का निरन्तर जप करें तथा द्वारिका पुराण के संग्राम भाग (दुर्गा सप्तशती) का पाठ करें।
- प्रसाद वितरण: उपस्थित सभी भक्तों को तैयार किए गये भोग को समान मात्रा में बाँटें। यह भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत करता है।
पूजा के बाद दिन भर लाल कपड़े पहनना, शाकाहारी भोजन करना और शांत मन से ध्यान लगाना सलाह योग्य है। ऐसे छोटे‑छोटे कदम आध्यात्मिक लाभ को दोगुना कर देते हैं।
सारांश में, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा न केवल एक अनुष्ठान है बल्कि आत्म‑शुद्धि, दृढ़ संकल्प और जीवन में नई ऊर्जा का स्रोत है। सही विधि से किए गये अनुष्ठान से मन में शांति, विवेक और लक्ष्य‑प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है।